बाह्य प्राणायाम
संस्कृत भाषा में "बाह्या" का अर्थ "बाहर" से है, इस प्राणायाम में शरीर को विभिन्न बंधों में रखने से पहले सांस को पूरी तरह से बाहर निकाला जाता है। इसे प्राणायाम में मूल बंध, उड्डियान बंध और जलंधर बंध का उपयोग होता है।
बाह्य प्राणायाम के लाभ
- श्वास प्राणायाम को खाली पेट होने पर करना चाहिए ।
- बाह्य प्राणायाम में उड्डियान बंध में पेट की मांसपेशियों को खींचाव मिलता है, जिसे पाचन बेहतर होता है । गैस्ट्रिक, एसिडिटी और कब्ज की समस्याओं पर नियंत्रण रहता है।
- यह मधुमेह में लाभदायक है।
- बाह्या प्राणायाम में पेट, जिगर, गुर्दा और गर्भाशय आदि जैसे आंतरिक अंगों को रक्त की आपूर्ति बन्धनों से मुक्त होने पर मिलती है। जिसे जिससे इन अंगों से संबंधित विभिन्न बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।
- यह ध्यान के साथ एकाग्रता और स्मृति के स्तर में सुधार करने में मदद करता है।
- इस प्राणायाम के अभ्यास से विभिन्न मांसपेशियों और जोड़ों के लचीलेपन और ताकत में सुधार होता है।
बाह्य प्राणायाम कैसे करें
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नीचे दिए गए बाह्य प्राणायाम के अभ्यास के लिए चरण-दर-चरण निर्देश दिए गए हैं।
- सुखासन या पद्मासन में बैठें ऊँगली को वायु मुद्रा में रखे ।
- गहरी सांस लें और फेफड़ों, पेट से पूरी सांस बहार छोड़ें, साथ ही साथ मलद्वार को सिकुड़े (मूल बंध) और पेट को पसली के अंदर की ओर खींचे (उड्डियान बंध) ।
- अब सांस को पकड़े और अपनी ठोड़ी को छाती से स्पर्श करे (जलंधर बंध) ।
- जब तक आप सहज महसूस करे तब तक इन सभी बंदों को पकड़ें और फिर सभी को गहरी साँस के साथ छोड़ें।
- आराम करें और प्रक्रिया को 3-4 बार दोहराएं।
सावधानियां
- ब्लड प्रेशर (बीपी) से पीड़ित को इसके अभ्यास से बचना चाहिए।
- गर्भवती महिलाओं या महिलाओं को अपने पीरियड्स (मासिक धर्म) के दौरान इस नहीं करना चाहिए।
- हृदय या सांस से संबंधित बीमारियां से पीड़ित इस न करे।