गोरक्षासन
इस योगासन का नाम ऋषि गोरखनाथ के नाम पर रखा गया है, जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने ध्यान के लिए इस मुद्रा का इस्तेमाल किया था।
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गोरक्षासन पैरों के तलवों और घुटनों को जमीन पर रखकर बैठने की मुद्रा में किया जाता है ।
गोरक्षासन करने की विधि
पांव की एडियों को मिलाकर टांगों को इकट्ठा कर जांघों के नीचे (जननेंद्रिय और गुदा स्थान के मध्य) लगा दें। दोनों हाथों की कंघी बनाकर दोनों पांवों के अगले भाग को पकड़ लें। दोनों हाथों के अंगूठे पांवों के अंगूठों के ऊपर हों। श्वास भरते हुए कमर सीधी करें, प्रयास करें कि घुटने भूमि को छूएं। बाजू सीधे कर लें। इस स्थिति में जितना समय आप आसानी से श्वास को रोक सकते हैं, रोकें। फिर धीरे-धीरे श्वास बाहर निकाल दें। शरीर को ढीला कर दें और पांवों को खोल दें। ध्यान स्वाधिष्ठान-चक्र पर।
इसकी दूसरी स्थिति में, अपनी एड़ियों पर बैठें और अपने दोनों हाथ दोनों घुटनों पर। दोनों हाथों के दबाव से घुटनों को जमीन से लगाएं। अपनी कमर को सीधा करने का प्रयास करें, चेहरा सामने रहेगा। थोड़ी देर रुकें, फिर आसन को खोल दें, हाथ पीछे, शरीर ढीला।
गोरक्षासन के लाभ
- इस आसन से शुक्र ग्रंथियों (Seminal Glands) का विशेष व्यायाम होता है।
- वीर्य की रक्षा करने में पर्याप्त सहायता मिलती है। स्वप्नदोष आदि रोगों को दूर करने में लाभदायक है।
- यह योग मुद्रा आपके पैरों को कोमल बनाती है ।
- गोरक्षासन एक प्रभावी आसन है जो आपको सीधे बैठने में मदद करता है और साथ ही सीधे बैठने की आदत भी डालता है। इसलिए यह आसन पीठ के लिए वास्तव में अच्छा है ।
- आपकी कुंडलिनी शक्ति को जगाने में मदद करता है।
- यह मूत्र विकारों और बवासीर को ठीक कर सकता है । गोरक्षासन को विभिन्न प्राणायाम तकनीकों के साथ मिला किया जा सकता है ।
- सुस्ती की समस्याओं को दूर करता है। यह योग मुद्रा आपके दिमाग के साथ-साथ शरीर को भी ऊर्जा प्रदान करता है।